लिवर प्रत्यारोपण सर्जरी
जब मरीज़ सर्जरी लिए हॉस्पिटल में भर्ती होता है तो उसके कुछ टेस्ट फिर से किए जाएँगे। जब ये सुनिश्चित हो जाएगा कि मरीज़ उस समय सर्जरी के लिए फ़िट है तभी उसकी लिवर प्रत्यारोपण सर्जरी शुरू की जाएगी।
मरीज़ को ऑपरेशन थिऐटर में ले जाने के क़रीब २ घंटे बाद ही असल ऑपरेशन शुरू होता है। इन २ घंटों में मरीज़ को सुंघनी दी जाती है और उसके शरीर में विभिन्न प्रकार की नलियाँ (जैसे पेशाब का कैथेटर, पेट की नली, ब्लड देने वाली नलियाँ) डाली जाती हैं । सुंघनी देने के बाद मरीज़ पूरी तरह से बेहोश हो जाएगा, उसको वेंटिलेटर से कनेक्ट कर दिया जाएगा और उसे किसी भी प्रकार का दर्द नहीं होगा, ना ही ऑपरेशन के समय की बातों का बाद में ध्यान रहेगा। सर्जरी के दौरान सुंघनी के डॉक्टर मरीज़ के शरीर के सभी मापदंडों पर नज़र रखेंगे।
ब्रेन-डेड डोनर से लिवर प्रत्यारोपण के समय मरीज़ का ऑपरेशन तक तक शुरू नहीं किया जाता जब तक डोनर का लिवर ट्रांसप्लांट सर्जन ना देख ले और उसके अच्छे होने की संतुष्टि ना हो जाए।
ऑपरेशन के दौरान ट्रांसप्लांट सर्जन मरीज़ के पेट में पहुँचने के लिए एक लम्बा चीरा लगाता है। चीरे का आकार मरीज़ की शारीरिक बनावट, बीमारी की गम्भीरता और सर्जन के दृष्टिकोण पर निर्भर करता है और उसका फ़ैसला सर्जरी के दौरान ही किया जाता है। अगर कोई जीवित व्यक्ति या महिला अपने लिवर का टुकड़ा किसी पेशंट को दे रहे हैं तो चीरा लेते वक़्त सुंदरता और सुरक्षा दोनों का ही ध्यान रखा जाता है।
रेसिपीयंट ऑपरेशन की शुरुआत मरीज़ का पुराना लिवर निकालने से होती है। सिरोटिक लिवर सिकुड़ा हुआ, छोटा और आस-पास के अव्यवों से चिपका होता है और उसे निकालते हुए काफ़ी रक्तस्रवाह (ब्लीडिंग) होने की सम्भावना होती है। लिवर निकालते समय उस तक रक्त पहुँचने वाली नसें काट दी जाती हैं और पित्त वसिका (बाइल डक्ट) को भी अलग किया जाता है। इसके बाद सावधानी से पुराने लिवर के स्थान पर नया डोनर लिवर रख दिया जाता है और रक्त आपूर्ति व पित्त वसिका को फिर से जोड़ देते हैं। नया लिवर तुरंत ही काम करना चालू कर देता है और पित्त बनाने लगता है। सर्जरी का समय मरीज़ की बीमारी की गम्भीरता पर निर्भर करता है। आम-तौर पर ये समय ८ -१२ घंटे होता है। इसके बाद धागों और सर्जिकल स्टेप्लर की मदद से चीरा सिल दिया जाता है।
लाइव लिवर प्रत्यारोपण सर्जरी
अगर लाइव लिवर प्रत्यारोपण (live related liver transplant) किया जा रहा है तो डोनर के लिवर का दायाँ हिस्सा (जो की पूरे लिवर का ६०-७० प्रतिशत होता है) काट कर निकाला जाएगा। ऐसे में डोनर का ऑपरेशन शुरू होने के बाद सबसे पहले डोनर के लिवर की गुणवत्ता देखी जाती है। उसके बाद डोनर के लिवर के दाएँ हिस्से को काट कर निकालने का काम शुरू होता है। इसके बाद मरीज़ के शरीर में इस लिवर को प्रत्यारोपित करने की प्रक्रिया होती है । डोनर ऑपरेशन आम तौर पर ४-६ घंटे चलता है जबकि लिवर रोगी का ऑपरेशन ८-१२ घंटे चलता है। ऑपरेशन ख़त्म होने के १२ घंटों के अंदर ही डोनर का बचा हुआ लिवर (बायाँ हिस्सा) और लिवर रोगी के शरीर में लगाया गया लिवर का टुकड़ा (दायाँ हिस्सा) दोनो ही पुनर्जीवित होने लगते हैं और अगले ६-८ हफ़्तों में ये बढ़ के नॉर्मल साईज़ के हो जाते हैं। लिवर डोनेशन एक बहुत ही सुरक्षित ऑपरेशन है और इसमें डोनर को कोई ख़तरा नहीं है। कोई भी स्वस्थ आदमी या औरत लिवर डोनेशन कर सकते हैं।
डोनर ऑपरेशन के समय लिवर के टुकड़े के साथ पित्त की थैली (gall bladder) हमेशा ही निकाल दी जाती है। डोनर और लिवर रोगी दोनो के ही पेट में एक ट्यूब रख दी जाती है जिससे किसी भी प्रकार के रक्त स्रवाह का पता लग सके। इस पूरे ऑपरेशन में ५-१० बैग रक्त की आवश्यकता होती है लेकिन ये पूरी तरह से पेशंट की बीमारी के ऊपर निर्भर करता है और ज़्यादा पुरानी और गम्भीर बीमारी होने की स्तिथि में ज़्यादा रक्त बैग की ज़रूरत भी पड़ सकती है।
ऑपरेशन ख़त्म होने के बाद डोनर को वेंटिलेटर से निकाल दिया जाता है। लेकिन मरीज़ (recipient) को वेंटिलेटर पर ही ICU में शिफ़्ट किया जाता है।